9 - Param Guhya Yog (परम गुह्य योग) - Shlovij Lyrics
By: Admin | Artist: S shlovij | Published: 2024-21-09T18:35:06:00+07:00Lirikku.ID - 9 - Param Guhya Yog (परम गुह्य योग) - Shlovij Lyrics: Halo Lirikku.ID, Dalam konten ini, kami menyediakan chord gitar untuk lagu "9 - Param Guhya Yog (परम गुह्य योग) - Shlovij Lyrics" yang dinyanyikan oleh Toton S shlovij. Dengan chord yang disajikan, pemula atau penggemar musik dapat dengan mudah memainkan lagu ini dengan gitar mereka sendiri. Kami menyajikan chord dengan akurasi tinggi sehingga pemain dapat mengikuti alunan musiknya dengan baik. Juga, kami akan memberikan informasi tambahan mengenai lirik lagu dan mungkin beberapa tips untuk menyempurnakan permainan gitar. Konten ini cocok untuk penggemar musik yang ingin belajar lagu baru atau bagi mereka yang ingin menikmati kesenangan bermain musik dengan gitar. Silahkan disimak 9 - Param Guhya Yog (परम गुह्य योग) - Shlovij Lyrics Berikut Dibawah ini untuk Selanjutnya.
नौवां अध्याय बातें इसमें भी ज्ञान की हैं
अर्जुन को माधव ने विद्या दी यूं विज्ञान की है
बोले माधव, हे अर्जुन परम गोपनीय ज्ञान बताता
हे अर्जुन, सुन ये बात हर प्राणी के कल्याण की है।
verse:*
कहत ये माधव, अर्जुन सुन
ज्ञान जो है विज्ञान सहित
ऐसा राज, जो विद्या राज
करे मुक्त दुख से, सुन ध्यान सहित।
कर्म, धर्म के प्रति ना श्रद्धा जिसमें
होता मुझे प्राप्त नहीं
मृत्यु लोक में करे भ्रमण
हो पुनर्जन्म तो भी वास यही।
मुझ निराकार परमात्मा से ये जगत व्याप्त, मैं इससे ना
प्राणी सारे मुझमें ही व्याप्त
हर प्राणी के, मैं पर हिस्से ना।
भूत, जीव निर्जीव सबकी उत्पत्ति मुझसे, मेरी आत्म से
फिर भी ना मैं किसी देह में शामिल
प्राणी सारे परमात्मा से।
होता जब एक कल्प खतम
तो सारे प्राणी और जीव भूत
वापस मुझमें समाते और
हो जाते मेरे सभी अधिभूत
भांति इसके ही कल्पो के आदी में
वापस उनको रचता मैं।
सुन अर्जुन, जिसके जैसे कर्म
वैसे ही प्राणी को रचता मैं।।
कृष्ण हूं मैं सुन मायाधारी
मैं ही रचता दुनिया, मैं ही माया सारी
मैं ही कर्म और मैं ही ज्ञान
मैं ही समयचक्र,मैं ही चक्रधारी।
ज्ञान की सीमा है अर्जुन
लेकिन पर सुन अज्ञान की ना
ईश्वर को भी समझे साधारण
परमभाव जो मेरा जानते ना।
श्लोक बारह कहें कृष्ण
आसुरी और मोहिनी प्रकृति के भी
लोग अपना जीवन बिताते पर व्यर्थ कार्य, मुझे मानते ना।
विपरीत इसके दैवीय प्रकृति के
लोग करते मेरी उपासना।
नित्य भजते मेरे भजन वो
भक्ति में लीन करें प्रार्थना।
आगे इनके भी ज्ञान योगी
मुझे माने निर्गुण, निराकार जो कि
भाव मुक्त भजते सदा वो
सदा करते मेरी आराधना।
कर्ता मैं ही, मैं ही यज्ञ अर्जुन
मैं ही मंत्र, मैं ही सुन औषधि
घृत भी मैं ही, मैं ही अग्नि
मैं ही हवनरूपी क्रिया की हूं रोशनी।
करे धारण सुन जो सम्पूर्ण जगत
वो पिता माता और पितामह
योग्य जानने चारों वेद
मैं ही औंकार मैं ही विधाता।।
मैं ही परमधाम, उत्पति सबकी
सबकी प्रलय, हाँ मैं ही मृत्यु हूं
क्रिया होती जितनी जहां में
सब क्रिया पार्थ मैं कराता।।
[श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं कि हे अर्जुन इस संसार में जो भी क्रिया होती हैं, वो सब करवाने वाला मैं ही हूं]
नौवां अध्याय बातें इसमें भी ज्ञान की हैं
अर्जुन को माधव ने विद्या दी यूं विज्ञान की है
बोले माधव, हे अर्जुन परम गोपनीय ज्ञान बताता
हे अर्जुन, सुन ये बात हर प्राणी के कल्याण की है।
पापरहित होकर करता मेरा भजन जो वो क्या पाता सुन?
दिव्य देवों के भोग भोगने
स्वर्ग वो फिर चला जाता सुन
और जो रखता असद कामना
मिलता फिर से उन्हें मृत्यु लोक
सत्य कामना करके कृष्ण जो भजता, स्वर्ग वो पाता सुन।
लेकिन प्राप्त स्वर्ग भी अर्जुन
पुण्यों के आधार पर है
जब तक पुण्यों का प्रभाव
तब तक ही प्राप्त आभार ये है
जैसे ही छूटा प्रभाव से
पुण्य के,वापस मृत्यु लोक
पर जो भजते सिर्फ मुझे
स्वयं मिलते मुझ निराकार में हैं।
आगे सुन अर्जुन जो पूजते
अन्य देवता, उनका क्या?
एक तरह से मुझे ही भजते
वो भी पर मैं उनका क्या?
प्राप्त होते वो उन्हीं देव को
अपने सारे भोग सहित
जिसको जो पूजे हो प्राप्त वही देव, उन्हें मैं उनका ना।।
देव पूजे जो देव प्राप्त हो
पितृ पूजे जो पितृ प्राप्त हो
भूत पूजे जो भूत, और जो
पूजे कृष्ण उन्हें कृष्ण प्राप्त हो।
जो जैसे कर्मों के साथ
जिन्हे होता प्राप्त मिले वैसा जन्म
पर जिनको हो कृष्ण प्राप्त
मिले मोक्ष, होता ना पुनर्जन्म।
हे अर्जुन, तू अपने सारे कर्म
मुझे कर अर्पण सुन
हो जा बंधन से मुक्त कर्मों के
देख फिर दर्पण सुन
खुद को दे सौंप मुझे और
कर्मयोग पर ध्यान लगा
मैं तीनों लोकों में हर जगह
हर वस्तु में हर क्षण सुन।
सच्चे मन से गर भजता पापी भी
और करता मेरा अनुसरण
उसका भी मैं कल्याण करता
और प्राप्त होती उसे मेरी शरण
अर्जुन सुन, मैं हूं समान सबके लिए
जो भी भजते मुझे सच्चे मन से
स्त्री,पापी या हो पुरुष
या कोई सा भी वो हो वर्ण।
कृष्ण बोले अर्जुन से, अपना मन
हृदय सब मुझे अर्पण कर
सिर्फ मुझमें ही ध्यान लगा
ऐसा कर तू मुझको ही प्राप्त होगा।
तन मन कर एकाग्र पार्थ
और खुद को युद्ध के समर्पण कर
अंतिम श्लोक अध्याय नौ का
अध्याय अब है समाप्त होता।।
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