lirikku.id
a b c d e f g h i j k l m n o p q r s t u v w x y z 0 1 2 3 4 5 6 7 8 9 #
.

Surah Yaseen - Sheikh Sudais Lyrics


By: Admin | Artist: S sheikh sudais | Published: 2024-21-09T22:34:24:00+07:00
Surah Yaseen - Sheikh Sudais LyricsLirikku.ID - Surah Yaseen - Sheikh Sudais Lyrics: Halo Lirikku.ID, Dalam konten ini, kami menyediakan chord gitar untuk lagu "Surah Yaseen - Sheikh Sudais Lyrics" yang dinyanyikan oleh Toton S sheikh sudais. Dengan chord yang disajikan, pemula atau penggemar musik dapat dengan mudah memainkan lagu ini dengan gitar mereka sendiri. Kami menyajikan chord dengan akurasi tinggi sehingga pemain dapat mengikuti alunan musiknya dengan baik. Juga, kami akan memberikan informasi tambahan mengenai lirik lagu dan mungkin beberapa tips untuk menyempurnakan permainan gitar. Konten ini cocok untuk penggemar musik yang ingin belajar lagu baru atau bagi mereka yang ingin menikmati kesenangan bermain musik dengan gitar. Silahkan disimak Surah Yaseen - Sheikh Sudais Lyrics Berikut Dibawah ini untuk Selanjutnya.

या-सीन (ya-sin): 1 – या॰ सीन॰
या-सीन (ya-sin): 4 – एक सीधे मार्ग पर
या-सीन (ya-sin): 5 – – क्या ही ख़ूब है,
प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावाल का इसको
अवतरित करना!
या-सीन (ya-sin): 6 – ताकि तुम ऐसे लोगों
को सावधान करो, जिनके बाप-दादा
को सावधान नहीं किया गया; इस
कारण वे गफ़लत में पड़े हुए है
या-सीन (ya-sin): 7 – उनमें से अधिकतर
लोगों पर बात सत्यापित हो चुकी है।
अतः वे ईमान नहीं लाएँगे।
या-सीन (ya-sin): 8 – हमने उनकी
गर्दनों में तौक़ डाल दिए है जो उनकी
ठोड़ियों से लगे है। अतः उनके सिर
ऊपर को उचके हुए है
या-सीन (ya-sin): 9 – और हमने
उनके आगे एक दीवार खड़ी कर दी है
और एक दीवार उनके पीछे भी। इस
तरह हमने उन्हें ढाँक दिया है। अतः
उन्हें कुछ सुझाई नहीं देता
या-सीन (ya-sin): 10 – उनके लिए
बराबर है तुमने सचेत किया या उन्हें
सचेत नहीं किया, वे ईमान नहीं लाएँगे
या-सीन (ya-sin): 11 – तुम तो बस
सावधान कर रहे हो। जो कोई
अनुस्मृति का अनुसरण करे और परोक्ष
में रहते हुए रहमान से डरे, अतः क्षमा
और प्रतिष्ठामय बदले की शुभ सूचना दे दो
या-सीन (ya-sin): 12 – निस्संदेह हम
मुर्दों को जीवित करेंगे और हम लिखेंगे
जो कुछ उन्होंने आगे के लिए भेजा और
उनके चिन्हों को (जो पीछे रहा) ।
हर चीज़ हमने एक स्पष्ट किताब में गिन
रखी है
या-सीन (ya-sin): 13 – उनके लिए
बस्तीवालों की एक मिसाल पेश करो,
जबकि वहाँ भेजे हुए दूत आए
या-सीन (ya-sin): 14 – जबकि हमने
उनकी ओर दो दूत भेजे, तो उन्होंने
झुठला दिया। तब हमने तीसरे के द्वारा
शक्ति पहुँचाई, तो उन्होंने कहा, “हम
तुम्हारी ओर भेजे गए हैं।”
या-सीन (ya-sin): 15 – वे बोले,
“तुम तो बस हमारे ही जैसे मनुष्य हो।
रहमान ने तो कोई भी चीज़ अवतरित
नहीं की है। तुम केवल झूठ बोलते हो।”
या-सीन (ya-sin): 16 – उन्होंने कहा,
“हमारा रब जानता है कि हम निश्चय
ही तुम्हारी ओर भेजे गए है
या-सीन (ya-sin): 17 – औऱ हमारी
ज़िम्मेदारी तो केवल स्पष्ट रूप से संदेश
पहुँचा देने की हैं।”
या-सीन (ya-sin): 18 – वे बोले,
“हम तो तुम्हें अपशकुन समझते है,
यदि तुम बाज न आए तो हम तुम्हें
पथराव करके मार डालेंगे और तुम्हें
अवश्य हमारी ओर से दुखद यातना पहुँचेगी।”
या-सीन (ya-sin): 19 – उन्होंने कहा,
“तुम्हारा अवशकुन तो तुम्हारे अपने ही
साथ है। क्या यदि तुम्हें याददिहानी
कराई जाए (तो यह कोई क्रुद्ध होने की
बात है)? नहीं, बल्कि तुम मर्यादाहीन लोग
हो।”
या-सीन (ya-sin): 20 – इतने में नगर के दूरवर्ती सिरे से एक व्यक्ति दौड़ता हुआ
आया। उसने कहा, “ऐ मेरी क़ौम के लोगो!
उनका अनुवर्तन करो, जो भेजे गए है।
या-सीन (ya-sin): 21 – उसका
अनुवर्तन करो जो तुमसे कोई बदला नहीं
माँगते और वे सीधे मार्ग पर है
या-सीन (ya-sin): 22 – “और मुझे क्या
हुआ है कि मैं उसकी बन्दगी न करूँ,
जिसने मुझे पैदा किया और उसी की ओर
तुम्हें लौटकर जाना है?
या-सीन (ya-sin): 23 – “क्या मैं उससे
इतर दूसरे उपास्य बना लूँ? यदि रहमान
मुझे कोई तकलीफ़ पहुँचाना चाहे तो
उनकी सिफ़ारिश मेरे कुछ काम नहीं आ
सकती और न वे मुझे छुडा ही सकते है
या-सीन (ya-sin): 24 – “तब तो मैं
अवश्य स्पष्ट गुमराही में पड़ जाऊँगा
या-सीन (ya-sin): 25 – “मैं तो तुम्हारे
रब पर ईमान ले आया, अतः मेरी सुनो!”
या-सीन (ya-sin): 26 – कहा गया,
“प्रवेश करो जन्नत में!” उसने कहा,
“ऐ काश! मेरी क़ौम के लोग जानते
या-सीन (ya-sin): 27 – कि मेरे रब ने मुझे
क्षमा कर दिया और मुझे प्रतिष्ठित
लोगों में सम्मिलित कर दिया।”
या-सीन (ya-sin): 28 – उसके
पश्चात उसकी क़ौम पर हमने आकाश
से कोई सेना नहीं उतारी और हम इस
तरह उतारा नहीं करते
या-सीन (ya-sin): 29 – वह तो केवल एक
प्रचंड चीत्कार थी। तो सहसा क्या
देखते है कि वे बुझकर रह गए
या-सीन (ya-sin): 30 – ऐ अफ़सोस
बन्दो पर! जो रसूल भी उनके पास आया,
वे उसका परिहास ही करते रहे
या-सीन (ya-sin): 31 – क्या उन्होंने
नहीं देखा कि उनसे पहले कितनी ही
नस्लों को हमने विनष्ट किया कि वे उनकी
ओर पलटकर नहीं आएँगे?
या-सीन (ya-sin): 32 – और जितने भी है,
सबके सब हमारे ही सामने
उपस्थित किए जाएँगे
या-सीन (ya-sin): 33 – और एक निशानी
उनके लिए मृत भूमि है। हमने उसे जीवित
किया और उससे अनाज निकाला, तो वे
खाते है
या-सीन (ya-sin): 34 – और हमने उसमें
खजूरों और अंगूरों के बाग लगाए और
उसमें स्रोत प्रवाहित किए;
या-सीन (ya-sin): 35 – ताकि वे उसके
फल खाएँ – हालाँकि यह सब कुछ उनके
हाथों का बनाया हुआ नहीं है। –
तो क्या वे आभार नहीं प्रकट करते?
या-सीन (ya-sin): 36 – महिमावान है
वह जिसने सबके जोड़े पैदा किए धरती
जो चीजें उगाती है उनमें से भी और स्वयं
उनकी अपनी जाति में से भी और उन चीज़ो
में से भी जिनको वे नहीं जानते
या-सीन (ya-sin): 37 – और एक
निशानी उनके लिए रात है। हम उसपर से
दिन को खींच लेते है। फिर क्या देखते है
कि वे अँधेरे में रह गए
या-सीन (ya-sin): 38 – और सूर्य
अपने नियत ठिकाने के लिए चला जा रहा है।
यह बाँधा हुआ हिसाब है प्रभुत्वशाली,
ज्ञानवान का
या-सीन (ya-sin): 39 – और रहा चन्द्रमा,
तो उसकी नियति हमने मंज़िलों के क्रम
में रखी, यहाँ तक कि वह फिर खजूर की
पूरानी टेढ़ी टहनी के सदृश हो जाता है
या-सीन (ya-sin): 40 – न सूर्य ही से
हो सकता है कि चाँद को जा पकड़े और
न रात दिन से आगे बढ़ सकती है।
सब एक-एक कक्षा में तैर रहे हैं
या-सीन (ya-sin): 41 – और एक
निशानी उनके लिए यह है कि हमने उनके
अनुवर्तियों को भरी हुई नौका में सवार किया
या-सीन (ya-sin): 42 – और उनके
लिए उसी के सदृश और भी ऐसी चीज़े
पैदा की, जिनपर वे सवार होते है
या-सीन (ya-sin): 43 – और यदि हम
चाहें तो उन्हें डूबो दें। फिर न तो उनकी
कोई चीख-पुकार हो और न उन्हें बचाया
जा सके
या-सीन (ya-sin): 44 – यह तो बस
हमारी दयालुता और एक नियत समय तक
की सुख-सामग्री है
या-सीन (ya-sin): 45 – और जब उनसे
कहा जाता है कि उस चीज़ का डर रखो,
जो तुम्हारे आगे है और जो तुम्हारे पीछे है,
ताकि तुमपर दया कि जाए! (तो चुप्पी साझ
लेते है)
या-सीन (ya-sin): 46 – उनके पास उनके
रब की आयतों में से जो आयत भी आती है,
वे उससे कतराते ही है
या-सीन (ya-sin): 47 – और जब उनसे
कहा जाता है कि “अल्लाह ने जो कुछ रोज़ी
तुम्हें दी है उनमें से ख़र्च करो।” तो जिन लोगों
ने इनकार किया है, वे उन लोगों से, जो ईमान
लाए है, कहते है, “क्या हम उसको खाना
खिलाएँ जिसे .दि अल्लाह चाहता तो स्वयं
खिला देता? तुम तो बस खुली गुमराही में
पड़े हो।”
या-सीन (ya-sin): 48 – और वे कहते है
कि “यह वादा कब पूरा होगा, यदि तुम
सच्चे हो?”
या-सीन (ya-sin): 49 – वे तो बस एक
प्रचंड चीत्कार की प्रतीक्षा में है, जो उन्हें
आ पकड़ेगी, जबकि वे झगड़ते होंगे
या-सीन (ya-sin): 50 – फिर न तो वे कोई
वसीयत कर पाएँगे और न अपने घरवालों
की ओर लौट ही सकेंगे
या-सीन (ya-sin): 51 – और नरसिंघा में
फूँक मारी जाएगी। फिर क्या देखेंगे कि वे
क़ब्रों से निकलकर अपने रब की ओर चल
पड़े हैं
या-सीन (ya-sin): 52 – कहेंगे, “ऐ
अफ़सोस हम पर! किसने हमें सोते से जगा
दिया? यह वही चीज़ है जिसका रहमान ने
वादा किया था और रसूलों ने सच कहा था।”
या-सीन (ya-sin): 53 – बस एक ज़ोर
की चिंघाड़ होगी। फिर क्या देखेंगे कि वे
सबके-सब हमारे सामने उपस्थित कर दिए
गए
या-सीन (ya-sin): 54 – अब आज किसी
जीव पर कुछ भी ज़ुल्म न होगा और तुम्हें
बदले में वही मिलेगा जो कुछ तुम करते रहे
हो
या-सीन (ya-sin): 55 – निश्चय ही
जन्नतवाले आज किसी न किसी काम नें
व्यस्त आनन्द ले रहे है
या-सीन (ya-sin): 56 – वे और उनकी
पत्नियों छायों में मसहरियों पर तकिया
लगाए हुए है,
या-सीन (ya-sin): 57 – उनके लिए वहाँ
मेवे है। औऱ उनके लिए वह सब कुछ मौजूद
है, जिसकी वे माँग करें
या-सीन (ya-sin): 58 – (उनपर) सलाम है, दयामय रब का उच्चारित किया हुआ
या-सीन (ya-sin): 59 – “और ऐ
अपराधियों! आज तुम छँटकर अलग हो
जाओ
या-सीन (ya-sin): 60 – क्या मैंने तुम्हें
ताकीद नहीं की थी, ऐ आदम के बेटो! कि
शैतान की बन्दगी न करे। वास्तव में वह
तुम्हारा खुला शत्रु है
या-सीन (ya-sin): 61 – और यह कि मेरी
बन्दगी करो? यही सीधा मार्ग है
या-सीन (ya-sin): 62 – उसने तो तुममें से
बहुत-से गिरोहों को पथभ्रष्ट कर दिया।
तो क्या तुम बुद्धि नहीं रखते थे?
या-सीन (ya-sin): 63 – यह वही जहन्नम
है जिसकी तुम्हें धमकी दी जाती रही है
या-सीन (ya-sin): 64 – जो इनकार तुम
करते रहे हो, उसके बदले में आज इसमें
प्रविष्ट हो जाओ।”
या-सीन (ya-sin): 65 – आज हम
उनके मुँह पर मुहर लगा देंगे और उनके हाथ
हमसे बोलेंगे और जो कुछ वे कमाते रहे है,
उनके पाँव उसकी गवाही देंगे
या-सीन (ya-sin): 66 – यदि हम चाहें तो
उनकी आँखें मेट दें क्योंकि वे (अपने रूढ़)
मार्ग की और लपके हुए है। फिर उन्हें
सुझाई कहाँ से देगा?
या-सीन (ya-sin): 67 – यदि हम चाहें तो
उनकी जगह पर ही उनके रूप बिगाड़कर
रख दें क्योंकि वे सत्य की ओर न चल सके
और वे (गुमराही से) बाज़ नहीं आते।
या-सीन (ya-sin): 68 – जिसको हम
दीर्धायु देते है, उसको उसकी संरचना में
उल्टा फेर देते है। तो क्या वे बुद्धि से काम
नहीं लेते?
या-सीन (ya-sin): 69 – हमने उस (नबी) को
कविता नहीं सिखाई और न वह उसके लिए
शोभनीय है। वह तो केवल अनुस्मृति और
स्पष्ट क़ुरआन है;
या-सीन (ya-sin): 70 – ताकि वह उसे
सचेत कर दे जो जीवन्त हो और इनकार
करनेवालों पर (यातना की) बात स्थापित हो
जाए
या-सीन (ya-sin): 71 – क्या उन्होंने देखा
नहीं कि हमने उनके लिए अपने हाथों की
बनाई हुई चीज़ों में से चौपाए पैदा किए और
अब वे उनके मालिक है?
या-सीन (ya-sin): 72 – और उन्हें उनके
बस में कर दिया कि उनमें से कुछ तो उनकी
सवारियाँ हैं और उनमें से कुछ को खाते है।
या-सीन (ya-sin): 73 – और उनके लिए
उनमें कितने ही लाभ है और पेय भी है। तो
क्या वे कृतज्ञता नहीं दिखलाते?
या-सीन (ya-sin): 74 – उन्होंने अल्लाह से
इतर कितने ही उपास्य बना लिए है कि
शायद उन्हें मदद पहुँचे।
या-सीन (ya-sin): 75 – वे उनकी सहायता
करने की सामर्थ्य नहीं रखते, हालाँकि वे
(बहुदेववादियों की अपनी स्पष्ट में) उनके
लिए उपस्थित सेनाएँ है
या-सीन (ya-sin): 76 – अतः उनकी बात
तुम्हें शोकाकुल न करे। हम जानते है जो
कुछ वे छिपाते और जो कुछ व्यक्त करते है
या-सीन (ya-sin): 77 – क्या (इनकार
करनेवाले) मनुष्य को नहीं देखा कि हमने
उसे वीर्य से पैदा किया? फिर क्या देखते है
कि वह प्रत्क्षय विरोधी झगड़ालू बन गया
या-सीन (ya-sin): 78 – और उसने हमपर
फबती कसी और अपनी पैदाइश को भूल
गया। कहता है, “कौन हड्डियों में जान
डालेगा, जबकि वे जीर्ण-शीर्ण हो चुकी
होंगी?”
या-सीन (ya-sin): 79 – कह दो, “उनमें
वही जाल डालेगा जिसने उनको पहली बार
पैदा किया। वह तो प्रत्येक संसृति को भली-
भाँति जानता है
या-सीन (ya-sin): 80 – वही है जिसने
तुम्हारे लिए हरे-भरे वृक्ष से आग पैदा कर दी।
तो लगे हो तुम उससे जलाने।”
या-सीन (ya-sin): 81 – क्या जिसने
आकाशों और धरती को पैदा किया उसे
इसकी सामर्थ्य नहीं कि उन जैसों को पैदा
कर दे? क्यों नहीं, जबकि वह महान स्रष्टा,
अत्यन्त ज्ञानवान है
या-सीन (ya-sin): 82 – उसका मामला
तो बस यह है कि जब वह किसी चीज़
(के पैदा करने) का इरादा करता है तो
उससे कहता है, “हो जा!” और वह हो जाती है
या-सीन (ya-sin): 83 – अतः महिमा है
उसकी, जिसके हाथ में हर चीज़ का पूरा
अधिकार है। और उसी की ओर तुम लौटकर
जाओगे


Saksikan Video Surah Yaseen - Sheikh Sudais Lyrics Berikut ini..


Random Song Lyrics :

LIRIK YANG LAGI HITS MINGGU INI

Loading...

LIRIK YANG LAGI HITS BULAN INI

Loading...