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Salok Mahalla 9 (nauvan) - ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੯ - Poonam thakkar Lyrics


By: Admin | Artist: P poonam thakkar | Published: 2024-30-09T09:36:51:00+07:00
Salok Mahalla 9 (nauvan) - ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੯ - Poonam thakkar LyricsLirikku.ID - Salok Mahalla 9 (nauvan) - ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੯ - Poonam thakkar Lyrics: Halo Lirikku.ID, Dalam konten ini, kami menyediakan chord gitar untuk lagu "Salok Mahalla 9 (nauvan) - ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੯ - Poonam thakkar Lyrics" yang dinyanyikan oleh Toton P poonam thakkar. Dengan chord yang disajikan, pemula atau penggemar musik dapat dengan mudah memainkan lagu ini dengan gitar mereka sendiri. Kami menyajikan chord dengan akurasi tinggi sehingga pemain dapat mengikuti alunan musiknya dengan baik. Juga, kami akan memberikan informasi tambahan mengenai lirik lagu dan mungkin beberapa tips untuk menyempurnakan permainan gitar. Konten ini cocok untuk penggemar musik yang ingin belajar lagu baru atau bagi mereka yang ingin menikmati kesenangan bermain musik dengan gitar. Silahkan disimak Salok Mahalla 9 (nauvan) - ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੯ - Poonam thakkar Lyrics Berikut Dibawah ini untuk Selanjutnya.

गुन गोबिंद गाइओ नही जनमु अकारथ कीनु ॥

कहु नानक हरि भजु मना जिह बिधि जल कउ मीनु ॥१॥

बिखिअन सिउ काहे रचिओ निमख न होहि उदासु ॥
कहु नानक भजु हरि मना परै न जम की फास ॥२॥

तरनापो इउ ही गइओ लीओ जरा तनु जीति ॥
कहु नानक भजु हरि मना अउध जातु है बीति ॥३॥

बिरधि भइओ सूझै नही कालु पहूचिओ आनि ॥
कहु नानक नर बावरे किउ न भजै भगवानु ॥४॥

धनु दारा स्मपति सगल जिनि अपुनी करि मानि ॥
इन मै कछु संगी नही नानक साची जानि ॥५॥

पतित उधारन भै हरन हरि अनाथ के नाथ ॥
कहु नानक तिह जानीऐ सदा बसतु तुम साथि ॥६॥

तनु धनु जिह तो कउ दीओ तां सिउ नेहु न कीन ॥
कहु नानक नर बावरे अब किउ डोलत दीन ॥७॥

तनु धनु स्मपै सुख दीओ अरु जिह नीके धाम ॥
कहु नानक सुनु रे मना सिमरत काहि न रामु ॥८॥

सभ सुख दाता रामु है दूसर नाहिन कोइ ॥
कहु नानक सुनि रे मना तिह सिमरत गति होइ ॥९॥
जिह सिमरत गति पाईऐ तिह भजु रे तै मीत ॥
कहु नानक सुनु रे मना अउध घटत है नीत ॥१०॥

पांच तत को तनु रचिओ जानहु चतुर सुजान ॥
जिह ते उपजिओ नानका लीन ताहि मै मानु ॥११॥

घट घट मै हरि जू बसै संतन कहिओ पुकारि ॥
कहु नानक तिह भजु मना भउ निधि उतरहि पारि ॥१२॥

सुखु दुखु जिह परसै नही लोभु मोहु अभिमानु ॥
कहु नानक सुनु रे मना सो मूरति भगवान ॥१३॥

उसतति निंदिआ नाहि जिहि कंचन लोह समानि ॥
कहु नानक सुनि रे मना मुकति ताहि तै जानि ॥१४॥

हरखु सोगु जा कै नही बैरी मीत समानि ॥
कहु नानक सुनि रे मना मुकति ताहि तै जानि ॥१५॥

भै काहू कउ देत नहि नहि भै मानत आन ॥
कहु नानक सुनि रे मना गिआनी ताहि बखानि ॥१६॥

जिहि बिखिआ सगली तजी लीओ भेख बैराग ॥
कहु नानक सुनु रे मना तिह नर माथै भागु ॥१७॥

जिहि माइआ ममता तजी सभ ते भइओ उदासु ॥
कहु नानक सुनु रे मना तिह घटि ब्रहम निवासु ॥१८॥
जिहि प्रानी हउमै तजी करता रामु पछानि ॥
कहु नानक वहु मुकति नरु इह मन साची मानु ॥१९॥

भै नासन दुरमति हरन कलि मै हरि को नामु ॥
निसि दिनु जो नानक भजै सफल होहि तिह काम ॥२०॥

जिहबा गुन गोबिंद भजहु करन सुनहु हरि नामु ॥
कहु नानक सुनि रे मना परहि न जम कै धाम ॥२१॥

जो प्रानी ममता तजै लोभ मोह अहंकार ॥
कहु नानक आपन तरै अउरन लेत उधार ॥२२॥

जिउ सुपना अरु पेखना ऐसे जग कउ जानि ॥
इन मै कछु साचो नही नानक बिनु भगवान ॥२३॥

निसि दिनु माइआ कारने प्रानी डोलत नीत ॥
कोटन मै नानक कोऊ नाराइनु जिह चीति ॥२४॥

जैसे जल ते बुदबुदा उपजै बिनसै नीत ॥
जग रचना तैसे रची कहु नानक सुनि मीत ॥२५॥

प्रानी कछू न चेतई मदि माइआ कै अंधु ॥
कहु नानक बिनु हरि भजन परत ताहि जम फंध ॥२६॥

जउ सुख कउ चाहै सदा सरनि राम की लेह ॥
कहु नानक सुनि रे मना दुरलभ मानुख देह ॥२७॥
माइआ कारनि धावही मूरख लोग अजान ॥
कहु नानक बिनु हरि भजन बिरथा जनमु सिरान ॥२८॥

जो प्रानी निसि दिनु भजै रूप राम तिह जानु ॥
हरि जन हरि अंतरु नही नानक साची मानु ॥२९॥

मनु माइआ मै फधि रहिओ बिसरिओ गोबिंद नामु ॥
कहु नानक बिनु हरि भजन जीवन कउने काम ॥३०॥

प्रानी रामु न चेतई मदि माइआ कै अंधु ॥
कहु नानक हरि भजन बिनु परत ताहि जम फंध ॥३१॥

सुख मै बहु संगी भए दुख मै संगि न कोइ ॥
कहु नानक हरि भजु मना अंति सहाई होइ ॥३२॥

जनम जनम भरमत फिरिओ मिटिओ न जम को त्रासु ॥
कहु नानक हरि भजु मना निरभै पावहि बासु ॥३३॥

जतन बहुतु मै करि रहिओ मिटिओ न मन को मानु ॥
दुरमति सिउ नानक फधिओ राखि लेहु भगवान ॥३४॥

बाल जुआनी अरु बिरधि फुनि तीनि अवसथा जानि ॥
कहु नानक हरि भजन बिनु बिरथा सभ ही मानु ॥३५॥

करणो हुतो सु ना कीओ परिओ लोभ कै फंध ॥
नानक समिओ रमि गइओ अब किउ रोवत अंध ॥३६॥

मनु माइआ मै रमि रहिओ निकसत नाहिन मीत ॥
नानक मूरति चित्र जिउ छाडित नाहिन भीति ॥३७॥

नर चाहत कछु अउर अउरै की अउरै भई ॥
चितवत रहिओ ठगउर नानक फासी गलि परी ॥३८॥

जतन बहुत सुख के कीए दुख को कीओ न कोइ ॥
कहु नानक सुनि रे मना हरि भावै सो होइ ॥३९॥

जगतु भिखारी फिरतु है सभ को दाता रामु ॥
कहु नानक मन सिमरु तिह पूरन होवहि काम ॥४०॥

झूठै मानु कहा करै जगु सुपने जिउ जानु ॥
इन मै कछु तेरो नही नानक कहिओ बखानि ॥४१॥

गरबु करतु है देह को बिनसै छिन मै मीत ॥
जिहि प्रानी हरि जसु कहिओ नानक तिहि जगु जीति ॥४२॥

जिह घटि सिमरनु राम को सो नरु मुकता जानु ॥
तिहि नर हरि अंतरु नही नानक साची मानु ॥४३॥

एक भगति भगवान जिह प्रानी कै नाहि मनि ॥
जैसे सूकर सुआन नानक मानो ताहि तनु ॥४४॥

सुआमी को ग्रिहु जिउ सदा सुआन तजत नही नित ॥
नानक इह बिधि हरि भजउ इक मनि हुइ इक चिति ॥४५॥

तीरथ बरत अरु दान करि मन मै धरै गुमानु ॥
नानक निहफल जात तिह जिउ कुंचर इसनानु ॥४६॥

सिरु क्मपिओ पग डगमगे नैन जोति ते हीन ॥
कहु नानक इह बिधि भई तऊ न हरि रसि लीन ॥४७॥

निज करि देखिओ जगतु मै को काहू को नाहि ॥
नानक थिरु हरि भगति है तिह राखो मन माहि ॥४८॥

जग रचना सभ झूठ है जानि लेहु रे मीत ॥
कहि नानक थिरु ना रहै जिउ बालू की भीति ॥४९॥

रामु गइओ रावनु गइओ जा कउ बहु परवारु ॥
कहु नानक थिरु कछु नही सुपने जिउ संसारु ॥५०॥

चिंता ता की कीजीऐ जो अनहोनी होइ ॥
इहु मारगु संसार को नानक थिरु नही कोइ ॥५१॥

जो उपजिओ सो बिनसि है परो आजु कै कालि ॥
नानक हरि गुन गाइ ले छाडि सगल जंजाल ॥५२॥

दोहरा ॥

बलु छुटकिओ बंधन परे कछू न होत उपाइ ॥
कहु नानक अब ओट हरि गज जिउ होहु सहाइ ॥५३॥

बलु होआ बंधन छुटे सभु किछु होत उपाइ ॥
नानक सभु किछु तुमरै हाथ मै तुम ही होत सहाइ ॥५४॥

संग सखा सभि तजि गए कोऊ न निबहिओ साथि ॥
कहु नानक इह बिपति मै टेक एक रघुनाथ ॥५५॥

नामु रहिओ साधू रहिओ रहिओ गुरु गोबिंदु ॥
कहु नानक इह जगत मै किन जपिओ गुर मंतु ॥५६॥

राम नामु उर मै गहिओ जा कै सम नही कोइ ॥
जिह सिमरत संकट मिटै दरसु तुहारो होइ ॥५७॥१॥


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